सहारनपुर।
सहारनपुर की देवबन्द विधानसभा के गांव मिरगपुर मे एक ओर जहां आधुनिकता के दौर में युवा पीढ़ी बीढ़ी-सिगरेट, पान-तंबाकू और मांस- मदिरा को अपना फैशन बना चुकी है। वहीं सहारनपुर का मिरगपुर गांव आधुनिकता से परे नई इबारत लिख रहा है आधुनिकता इस गांव को अभी तक छू भी नहीं पाई है। यहां के युवा अपनी जवानी को धुंए में नहीं उड़ाते हैं और न ही अपनी जिंदगी में शराब का स्थान दे रहे हैं । मिरगपुर गांव के लोग करीब 700 सालों से चली आ रही परंपरा को कायम रखे हुए हैं । शायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां लोग नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करते हों लेकिन इस गांव में नशा और मांस तो दूर लहसुन-प्याज से गुरेज करते आ रहे हैं।

वर्षो पुरानी अनोखी परम्परा को कायम रखते हुए ग्रामीणों ने एकता की मिशाल कायम की है। लगातार 25 पीढ़ियों से गांव में नशीले पदार्थो पर पूर्ण रूप से प्रतिबंद लगा कर आज की युवा पीढ़ी के जीवन को संवारने में जुटे है। साथ ही पूरे गाँव में दुकानो पर भी नशीले पदार्थ बेचने पर भी प्रतिबंद लगाया है। इतना ही नहीं चौपालो में अकसर गुड़गुड़ाये जाने वाले हुक्के से परहेज कर ग्रामीण आस पास के ग्रामीणो को भी नशीले पदार्थो का सेवन नहीं करने की हिदायत देते है।

यहां के लोग खाली समय बिताने के लिए हुक्का नहीं गुड़गुड़ाते बल्कि गीत भजन गाकर समय बिताते है साथ ही एक दूसरे से सुख दुःख की बात कर हिम्मत भी बढ़ाते है। हुक्का गुड़गुड़ाये तो इन्हे शद्धियाँ बीत चुकी है। दरअसल मिरगपुर गाँव के लोग पिछले 600 सालो से चली आ रही अनोखी परम्परा को पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रखे हुए है। शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहाँ लोग नशीले पदार्थो जैसे – बीड़ी।, सिगरेट , गुटखा , पान , तम्बाकू , शराब आदि का सेवन करते हो लेकिन मिरगपुर गांव के ग्रामीण नशीले पदार्थ तो दूर लहसुन – प्याज से भी गुरेज करते है। ग्रामीणो ने लगातार 25-30 पीढ़ियों से इन सभी नशीली चीजो पर गांव में प्रतिबंद लगा कर अनोखी मशाल कायम की है। बताया जाता है कि ये प्रतिबंद गांव में 600 वर्ष पहले आये बाबा फकीरा की प्रेरणा का परिणाम है। ग्रामीण एक ओर जहाँ नशीले पदार्थो से खुद परहेज करते है वहीँ आने वाले मेहमानो को भी नशा न करने की हिदायत देते है। साथ ही नशीले पदार्थो के प्रतिबंध को गांव की खुशहाली का राज बताते है।