नई दिल्ली।
दिल्ली के राजेंद्र नगर में आईएएस कोचिंग हादसे पर बुधवार को हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए पुलिस और एमसीडी की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पणी की।
हादसे की उच्चस्तरीय जांच करवाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला ने आदेश देते हुए कहा कि इस मामले में दिल्ली पुलिस कल रिपोर्ट दाखिल करे। एमसीडी कमिश्नर भी सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहें। पुलिस के जांच अधिकारी और डीसीपी भी कोर्ट आएं। ड्रेन सिस्टम के ऊपर जो भी अतिक्रमण है, उसे हटाया जाए। एमसीडी के आला अधिकारी खुद फील्ड में जाएं, तो कुछ बदलाव होगा।
क्या एमसीडी का कोई अधिकारी जेल गया:
जज ने कहा, ”यह बेसमेंट कैसे बने? उनकी अनुमति किस इंजीनियर ने दी। उनसे पानी निकालने का क्या इंतज़ाम किया? यह सारे लोग जो ज़िम्मेदार हैं, वह क्या बच जाएंगे? इसकी जांच कौन करेगा? क्या एमसीडी का कोई एक अधिकारी जेल गया है? सिर्फ वहां से गुज़र रहे एक कार वाले को पकड़ लिया। इस तरह ज़िम्मेदारी तय की जा रही है। यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसी घटनाएं फिर न हों।” अब शुक्रवार 2.30 बजे सुनवाई होगी।
जज ने कहा कि समस्या यह है कि आपने सुविधाओं का ढांचा विकसित किए बिना बिल्डिंग बायलॉज में ढील दी। कई फ्लोर का निर्माण हो जाता है, लेकिन सरकार को जो सुविधाएं देनी होती है, वह नहीं दी जा रही। एमसीडी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। लोगों को सुविधा क्या देगी।
पुलिस पर भी टिप्पणी:
जज ने कहा, ”100 साल पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसे विकसित किए बिना बेहिसाब निर्माण होने दिया जा रहा है। पुलिस क्या जांच कर रही है? किसे पकड़ा अभी तक? क्या खुद पुलिस की जानकारी के बिना अवैध निर्माण हो जाते हैं, दूसरी गतिविधियां चलती हैं? सब के सब गेंद दूसरे के पाले में डालने में लगे हैं। क्या एमसीडी के अधिकारियों की भूमिका की जांच पुलिस कर रही है? इतना पानी वहां कैसे जमा हुआ?” जज ने कहा कि सड़क से गुजरने वाले को भी पकड़ लिया गया, लेकिन एमसीडी के वरिष्ठ अधिकारियों की क्या कोई भूमिका नहीं? सिर्फ कुछ जूनियर लोगों को सस्पेंड कर दिया, बस। बड़े अधिकारी अपने एसी कमरे से बाहर भी नहीं निकल रहे।
दिल्ली सरकार को भी फटकार:
जस्टिस ने कहा कि सरकार को कुछ पता ही नहीं है। उसकी कोई योजना ही नहीं है। एक दिन सूखे की शिकायत करते हैं, दूसरे दिन बाढ़ आ जाती है। आपको अपनी मुफ्त योजनाओं पर दोबारा विचार की ज़रूरत है। 6-7 लाख लोगों के लिए बसाए गए शहर में 3 करोड़ से ज़्यादा लोग हो गए हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर का कोई विकास नहीं हो रहा है।
मुख्य मुद्दे पर बात करने से बच रहे सरकार व एमसीडी:
जस्टिस ने कहा, ”ड्रेनेज की जगह पर एक पूरा मार्किट बस गया है। सरकार और एमसीडी इसे जानते हैं, पर इसकी बात भी नहीं कर रहे। अगर ड्रेन टूट गया है तो उसे ठीक नहीं किया जा सकता। हर चीज़ इतनी जटिल कर दी गई है कि एमसीडी को खुद कुछ पता नहीं कि कैसे सुधारें। जब पानी आता है, तो वह इंतज़ार नहीं करता। किसी को तो ज़िम्मेदारी लेनी होगी. हम एमसीडी कमिश्नर को निर्देश देते हैं कि खुद उस इलाके में जाएं। अगर पुलिस सही जांच नहीं करेगी, तो हम सीबीआई को मामला सौंपेंगे। दिल्ली में एमसीडी है, जल बोर्ड है, पीडब्ल्यूडी है। किसकी ज़िम्मेदारी क्या है, पता ही नहीं चलता। शायद हमें केंद्रीय गृह मंत्रालय से विचार करने को कहना होगा कि दिल्ली कैसे चलेगी।”