Saturday, March 15, 2025
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क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है? ईरान-इजरायल संघर्ष का गहराता संकट

by POOJA BHARTI
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दिल्ली डेस्क।

दुनिया में पहला विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ जो 1919 तक चला। दूसरा विश्व युद्ध 1939 में शुरू हुआ जो 1945 तक चला। हालांकि, भगवान ना करें ऐसा कुछ हो लेकिन अगर बात करें तीसरे विश्व युद्ध की, तो इसका भी होना स्वाभाविक सा प्रतीत हो रहा है। दुनिया में युद्ध तो बहुत हुए, अभी भी हो रहे हैं और भविष्य में भी होंगे। इसका सबसे बड़ा कारण शांति और अशांति का समीकरण है क्योंकि जहां शांति है वहां अशांति का होना भी अवश्यंभावी है। इसी का एक ताजा उदाहरण है ईरान-इजरायल युद्ध।

भूतकाल की मित्रता, वर्तमान की शत्रुता

जी हां, एक समय ऐसा था जब ईरान और इजरायल के बीच घनिष्ट मित्रता हुआ करती थी लेकिन आज ये दोनो ही एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। जब तक शांति थी मित्रता थी और जब अशांति आई तो यही मित्रता शत्रुता में बदल गई। इनकी वर्तमान में शांति और अशांति के बीच का एक सबसे कारण है इजरायल का लेबनान में लगातार हमले कर तबाही मचाना।

हालिया घटनाक्रम: इजरायल पर ईरान का हमला

दरअसल, अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए कि इजरायल ने हिजबुल्लाह के नए चीफ हाशेम सफिद्दीन को मार गिराया। इससे पहले पिछले मंगलवार रात ईरान ने इजरायल पर हमला कर दिया। ये हमला कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि 150 से 200 मिसाइलों का हमला था जो इजरायल पर दागी गईं। हालांकि इजरायल की और से बताया गया कि यहां ईरान के अटैक से किसी को किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंची। इसकी सबसे बड़ी वजह है इजरायल में अनगिनत तादाद में बॉम्ब शेल्टर के होने की। इजरायल के मुताबिक सैंकड़ों लोग बॉम्ब शेल्टर में आकर एकत्र हो गए जिस कारण किसी भी इजरायली को खरोच तक नहीं आई। तो वहीं ईरान ने दावा किया कि उसने जो बैलिस्टिक मिसाइलें इजरायल पर छोड़ी हैं उससे उसने हिजबुल्लाह के मुखिया हसन नसरल्लाह और हमास नेता हानियेह की मौत का बदला लिया जिस कारण इजरायल पर किए गए हमले की ईरान को अचीवमेंट हासिल हुई। इससे पहले भी ईरान ने इजरायल पर अप्रैल में हमला बोला था जो की इतना भयानक नहीं था जितना कि अब हुआ क्योंकि उस वक्त 110 बैलिस्टिक मिसाइलें और 30 ड्रोन से हमले किए गए थे।

इजरायल की प्रतिक्रिया और ईरान की धमकी

हिजबुल्लाह चीफ की मौत से तिलमिलाए ईरान द्वारा किए हमले पर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा “बहुत बड़ी गलती कर दी, कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाओ।” वहीं ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकीयन ने नेतन्याहू का जवाब देते हुए कहा “ये तो सिर्फ एक नमूना है, दोबारा हमले की सोचना मत वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।”

इजरायल का गठन और उसके पीछे का इतिहास

इजरायल देश का गठन 1948 को हुआ था। लेकिन तब सिवाय तुर्की के कोई भी देश इजरायल को मान्यता देने के पक्ष में नहीं था। मगर कहते हैं ना कि जिस पर अमेरिका मेहरबान हो जाए उसका भला कोई बिगड़ भी क्या सकता है और इसी मेहरबानी की वजह से इजरायल को मान्यता दे दी गई।

दरअसल 1948 से पहले इजरायल के स्थान पर फिलिस्तीन हुआ करता था जो कि मान्य देश नहीं था। वहां फ्लिस्तीनी और यहूदी रहा करते थे। 1948 में अंग्रेजों ने वहां भी वही किया था जो हमारे यहां किया था। अंग्रेजों ने फिलिस्तीनी को भी दो टुकड़ों में बांट दिया था। जमीन का एक टुकड़ा फिलिस्तीनियों का और दूसरा टुकड़ा यहूदियों का। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के सहयोग के कारण इजरायल 1948 में नया देश बना। चूंकि इजरायल अरब देशों के बीच में फंसा हुआ था और अरब देश और यहूदियों के बीच हमेशा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। लेकिन इसी बीच पहला मुस्लिम देश तुर्की जिसने इजरायल को मान्यता दी थी। जिसका अरब के बाकी देशों ने तुर्की के इस फैसले का कड़ा विरोध जताया था। मगर तुर्की ने अपना फैसला नहीं बदला।

ईरान और इजरायल के संबंधों का उतार-चढ़ाव

इसके बाद एक और मुस्लिम देश सामने आया जिसने इजरायल को मान्यता देने की बात कही और वो देश और कोई नहीं बल्कि ईरान था। दरअसल ईरान के बारे में ये कहा जाए कि वो उस समय अमेरिका का चाटुकार था और उसी के इशारे पर नाचता था तो इसमें भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक तरह से देखा जाए तो अमेरिका ईरान का उस समय गुरु हुआ करता था। अमेरिका का पूरा आर्थिक सहयोग ईरान को मिलता था जिसके बदले वो ईरान से अपने काम निकलवाता था। इजरायल को जब ईरान का साथ और सहयोग प्राप्त हुआ तब उसमे हिम्मत का नया संचार उत्पन्न हुआ कि कोई तो है जो उसकी मदद करने के लिए आगे आया है। यहीं से ईरान और इजरायल के रिश्ते मजबूत होते चले गए कि ईरान के साथ देने के बदले इजरायल ने भी उसकी और मदद का हाथ आगे बढाया। इजरायल ने ईरान से कहा कि हम आपकी सैन्य शक्ति को मजबूत करेंगे, आपके देश में मिलिट्री फोर्स, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस हथियार मुहैया कराएंगे। यहां तक कि भविष्य के लिए इजरायल की खुफिया एजेंसी मौसाद ने ईरान की खुफिया एजेंसी सावाक को स्पेशल ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया।

दरअसल ईरान अरब देशों के बीच अकेला ऐसा मुस्लिम देश है जो शिया देश है बाकी सभी सुन्नी देश हैं। इस कारण ईरान को लगता था कि शिया और सुन्नी वर्ग के देश के चलते कहीं किसी देश से रिश्ते ना खराब हो जाए या कहीं कोई जंग ना छिड़ जाए।

उस समय ईरान में पहलवी वंश के शाह का शासन हुआ करता था। पहलवी वंश की हुकूमत लगभग 1905 से चली आ रही थी कि अचानक 1970 आते ही पहलवी वंश के खिलाफ बगावत शुरू हो गई और ये वहीं के धार्मिक नेता आयातुल्लाह खामनेई के नेतृत्व में शुरू हुई। अयातुल्लाह का आरोप था कि ईरान गलत रास्ते पर चल रहा है और हमारे देश में वेस्टर्न कल्चर को बढ़ावा दिया जा रहा है और हम अपने कल्चर को भूल चुके हैं जो कि सरासर गलत है, ईरान को इस्लामिक देश बनाया जाना चाहिए और 1979 में आयातुल्लाह खामनेई के शासन की शुरुआत हो गई। जिसके बाद से ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया। अयातुल्लाह ने जहां इजरायल को छोटा शैतान नाम दिया तो वहीं अमेरिका को बड़े शैतान के नाम से बुलाया जाने लगा।

ईरान के सुप्रीम लीडर के संदेश से घबराई दुनिया

तेहरान की ग्रैंड मुसल्‍लाह मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई ने दुनियाभर के मुस्लिमों से एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि हमें अल्‍लाह के बताए रास्ते पर अडिग रहना चाहिए। दुश्‍मन अपनी नापाक सियासत फैलाना चाहते हैं, लेकिन अगर मुस्लिम एकजुट होकर खड़े होंगे, तो हम उनके मंसूबों को विफल कर देंगे। खामेनेई ने इजरायल पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सिर्फ हमारे नहीं, बल्कि फिलिस्तीन और यमन के भी दुश्मन हैं।

खामेनेई ने स्पष्ट किया, “इजरायल दुनियाभर के मुसलमानों के खिलाफ है। कई जगह मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। इसलिए मैं अरब के मुसलमानों से अनुरोध करता हूं कि हमारा समर्थन करें। हम लेबनान के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। हिज्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की मौत हमारे लिए एक गहरी क्षति है। उनका निधन हमें बहुत दुखी करता है।”

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